अमृता प्रीतम: उन्होंने अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का साहस दिखाया, सामाजिक बंधनों को तोड़ा और अपनी कलम से जादू फैलाया
अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम: उन्होंने अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का साहस दिखाया, सामाजिक बंधनों को तोड़ा और अपनी कलम से जादू फैलाया
31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में जन्मी अमृता प्रीतम ने पंजाबी और हिंदी साहित्य पर अमिट छाप छोड़ी। अमृता प्रीतम दर्द, प्यार और सच्चाई से भरी भारतीय साहित्य की आवाज़ हैं। उनमें अपना जीवन अपने ढंग से जीने का साहस था। 31 अक्टूबर को उनका निधन हो गया।
अमृता प्रीतम के लेखन की संवेदनशीलता और गहराई ने उन्हें साहित्य के शिखर तक पहुंचाया। उनका पहला कविता संग्रह 16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ था। उनकी शुरुआती कविताएं रोमांटिक थीं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी कलम सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी चलने लगी। विभाजन की त्रासदी ने उनके लेखन को एक नया मोड़ दिया। उनकी कविता ‘आज आखां वारिस शाह नू’ उस समय के दर्द और पीड़ा का एक अनूठा दस्तावेज है।
अमृता प्रीतम ने अपने साहित्यिक सफर में कई उपन्यास और कविता संग्रह लिखे। उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में उनके जीवन के संघर्ष, प्रेम और सामाजिक बाधाओं का विवरण है। ‘केज’ उनके सबसे महत्वपूर्ण उपन्यासों में से एक है, जिसमें विभाजन की त्रासदी और महिलाओं की दुर्दशा को दर्शाया गया है। यही उपन्यास आगे चलकर एक सफल फ़िल्म का आधार बना। उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में ‘एक सवाल’, ‘सागर और सीपियाँ’ और ‘दिल की गलियाँ’ शामिल हैं।